Wednesday, June 17, 2009

रिश्ता

कुछ सीधी सच्ची बातें बता दे
इतनी साधारण रुनझुन में
बात थी क्या
कि होश रहे गुम?
तेरी पायल से क्या रिश्ता है भावों का?
किसी रोज़ मेरी उलझन सुलझा दे...
कितनी साधारण बातें!
उनमें क्या मुद्दे थे
इतनी भी चिंतन के?
तेरी बातों से क्या रिश्ता है दर्शन का?
किसी रोज़ जरा ये राज़ बता दे...
आंसू जो जमे
आँखें पत्थर सी हो चली हैं जानम
एक से दिन रात
जैसे सारे खो गए हों मौसम।
तेरी यादों से कुछ रिश्ता है सावन का
इकबार जरा फ़िर से रुला दे....

2 comments:

Anonymous said...

sahi he bilkul.......
nice poem.....

shiv said...

nice yara