कुछ सीधी सच्ची बातें बता दे
इतनी साधारण रुनझुन में
बात थी क्या
कि होश रहे गुम?
तेरी पायल से क्या रिश्ता है भावों का?
किसी रोज़ मेरी उलझन सुलझा दे...
कितनी साधारण बातें!
उनमें क्या मुद्दे थे
इतनी भी चिंतन के?
तेरी बातों से क्या रिश्ता है दर्शन का?
किसी रोज़ जरा ये राज़ बता दे...
आंसू जो जमे
आँखें पत्थर सी हो चली हैं जानम
एक से दिन रात
जैसे सारे खो गए हों मौसम।
तेरी यादों से कुछ रिश्ता है सावन का
इकबार जरा फ़िर से रुला दे....
2 comments:
sahi he bilkul.......
nice poem.....
nice yara
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