Monday, August 25, 2014

बेनाम

अब वो हुनर नहीं बाकी
कि तेरा नाम लूं औ' गज़ल हो जाए।

अब वो तूं भी नहीं, तेरा जुनूं भी नहीं
कि आंखों में नींद न हो
औ' ख्वाबों को बन्दिशें भी नहीं।

अब वो तसब्बुर भी नहीं
कि कायनात के दूसरे छोर से
तेरे मन-माफ़िक मेटाफ़र ढूंढ़ लाऊँ।

हां मगर बयां बाकी है -
तो तेरी खुश्बू में गुंथे कुछ खुरदरे ख्याल
जर्रे-जर्रे में बिखेर आया हूं।

कभी खुद को भूल पाने शिद्दत हो
या उड़ सकने के हौसले जुटा पाओ
तो सबसे अन्जान शै से अपना नाम पूछ लेना।

तूं एक शायर का बिछ्ड़ा हुआ इश्क़ है
कुछ सदियाँ तो नाम के सज़्दे होंगे।

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