आवारा लफ्जों को फुसलाने, नज्में बनाने वाले
अब कहाँ लोग वो, दर्दों के नाज उठाने वाले
दिल की सतहों उठती है, जो बात बयां होती है
सबकी नजरों छुपा रक्खे हैं वो दर्द पुराने वाले
नब्ज़ देखी है, अभी जिन्दा हूँ, धडकनें बाकी हैं
रुक के सजदे क्यूं करते हैं यूं मशरुफ ज़माने वाले
शौक अच्छा है, तुम भी सिख गए वादों का हुनर
यूं इस बज्म मे आते हैं सब लौट के जाने वाले
जी में आया तो खुश्क मौसम से कारिगरी कर ली
मुझसे ही नकली हैं ये फूल इस डाल पे आने वाले.
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