Wednesday, April 28, 2010

ये फिजायें याद आएँगी...

ये फिजायें याद आएँगी....

ये बेबाकियत की ख़ामोशी,
ये शुकून में उलझी हुई तमन्नाओं की बेचैनियाँ,
ये रातों को जगाने वाले ज़ज्बे,
अपनी धुन में खुद बिखर के आकार लेती जिंदगी.

ये लोगों की, मौसमों की कैफियत,
ये रोज़मर्रा के बनते-बुझते किस्से,
ये बेफिक्री के आलम,
आलम-ए-सब्र की जुनूँ से ये सोहबत.

सादगी जिसमे रंग-ओ-आब पलते हैं,
बातें कि जिनसे रु-ब-रु हैं फलसफे,
गर्दिशें भी कितनी जहीन होती हैं,
ये गलियां कि जहाँ हिदोस्तान के ख्वाब पलते हैं.

इस जगह की सब अदाएं याद आएँगी.....

5 comments:

Ashutosh Kumar Mishra said...

awesome... mast hai

अभिनव said...

"ये शुकून में उलझी हुई तमन्नाओं की बेचैनियाँ,
ये रातों को जगाने वाले ज़ज्बे,
अपनी धुन में खुद बिखर के आकार लेती जिंदगी"

bahut khoob :)

कौटिल्य said...

well written

Avimuktesh said...

aap sabon ko dhanyawad :)

Phoenix said...

Its awesome....... aaj jaakar humein iski gehraayi samajh aayi .... Aap bhi bahut yaad aayenge :)