मोहल्ले के बाजु में कुछ खेत हैं
लोग कहते हैं वहां धान उगा करता था कभी।
मेरे बचपन में वहां क्रिकेट के मैदान थे
सिवाए बरसात के, जब पानी भर जाता था
बच्चे कागज़ की नावें तैराते थे उनमें।
अच्छी बनी नावें कभी-कभी बड़ी दूर निकल जाती थीं
उम्मीद होती थी की कोई लहर किसी रोज वापस खींच लाएगी उन्हें।
इसबार देखा तो शहर बड़ी तरक्की कर गया सा लगा
बच्चों को कागज़ की नावें बनानी नहीं आतीं
बारिस का पानी खेतों के बजाये रास्तों पर जमने लगा है
और घरों के दरम्यान जो खेत बचे हैं
उनमें प्लास्टिक की थैलियाँ तैरती हैं अब
कागज़ की नावें तो उलझ कर डूब जाएँ उनमें
अब उम्मीद नहीं रही
कोई लहर अब मेरी अच्छी नावों को कभी भी वापस नहीं ला पायेगी.....
13 comments:
good one
sahi hai sir...aap sahi mein aviji nhi kaviji ho...:)
shaharon ne waqai mein tarakki ki hai :)
एक बार फिर से... बहुत-बहुत धन्यवाद.... इतनी अच्छी कविता के लिए.... बहुत छोटी-सी है, लेकिन बहुत-कुछ कह रही है ये छोटी-सी कविता.....
pragati kar raha hai bachcha ..dino din..keept it up !
its real fact.....n very nice post keep it up.
aap sabon ko bahut bahut dhanyawad..
@Pawan Special thanks to you as u shared those cricket fields with me
bahut khoob
:)
bahut hi badhiya
:cricket kahaan khele ab?
Very gud poem its says lot of thing keep it up.
Plastic ne sara parisar kharab kar diya hai!
इस नए चिट्ठे के साथ आपको हिंदी चिट्ठा जगत में आपको देखकर खुशी हुई .. सफलता के लिए बहुत शुभकामनाएं !!
aap sabhi ko hausala afzai ke liye bahut bahut dhanyawad.. is kavita ka response meri apeksha se bhi bahut jyada raha
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