Sunday, January 24, 2010

मेरी दुनिया..

कैसी उलझन, क्या-क्या लोग, कितनी बातें मेरी दुनिया

तेरी हरेक शै पर बिछीं कितनी बिसातें मेरी दुनिया।

कितनी सदियाँ अपने अश्कों से तेरे घर के दीप जले

कितनी सदियाँ हमने आखों में काटी रातें मेरी दुनिया।

तेरे मेरे रिश्ते में ये खेल अजब क्यूँ होता है

तुझपर बहार आती, होतीं जब अपनी बरसातें मेरी दुनिया।

अपना तो फिर भी है क्या, हम तो जनम के जोगी ठहरे

तेरे अपनों को ही भारी तेरी सौगातें मेरी दुनिया।

1 comment:

Unknown said...

teri duniya mein itni kyun gam hai teri duniya mein...
jara sa baahar nikal kar dekho..gam ki ghata ko jhatak kar ke dekho...
fir se khushal hogi teri duniya...