Friday, January 29, 2010
सियासत
Sunday, January 24, 2010
मेरी दुनिया..
कैसी उलझन, क्या-क्या लोग, कितनी बातें मेरी दुनिया
तेरी हरेक शै पर बिछीं कितनी बिसातें मेरी दुनिया।
कितनी सदियाँ अपने अश्कों से तेरे घर के दीप जले
कितनी सदियाँ हमने आखों में काटी रातें मेरी दुनिया।
तेरे मेरे रिश्ते में ये खेल अजब क्यूँ होता है
तुझपर बहार आती, होतीं जब अपनी बरसातें मेरी दुनिया।
अपना तो फिर भी है क्या, हम तो जनम के जोगी ठहरे
तेरे अपनों को ही भारी तेरी सौगातें मेरी दुनिया।
Tuesday, January 5, 2010
ग़ज़ल
आ कि वो लम्हें, वही दिल-ए-बेक़रार आये
आ कि वही शामें, वो तेरा इंतज़ार आये।
आ कि ये दुनिया, ये सियासत न याद आये
आ कि ये घातें, ये बिसातें न याद आये।
आ कि बड़ी मुद्दत से बड़ी बेसबब हूँ मैं
आ कि तूं आये तो ज़रा जीने कि वजह आये।
आ कि मेरा हक जो नहीं, गुजारिश ही समझ ले
आ कि तूं आये तो मुझे मेरी भी याद आये।
आ कि बड़ी दिल में भरे रंज-ओ-ग़म हैं जानां
आ कि तूं आये तो ज़रा इत्मिनान आये।